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हमारे द्वारा किये जा रहेअच्छे बुरे कर्म ही हमारे मित्र और शत्रु हैं–सुनयमति जी
नवकार नगर में हो रही है धर्म की प्रभावना
खण्डवा/
सभी प्रकार के संकटों,विपदाओं और उपसर्गों का एकमात्र कारण हमारे कर्म ही हैं।जैन आगम में ज्ञानावरण आदि आठ कर्म बताये गये है।जिनके कारण यह जीव संसार मे दुख भोगता है।ये आठ कर्म ही हमारे मूल शत्रु हैं।अनादिकाल से हमने अनेकों शत्रु और मित्र बनाये है लेकिन हमारे अच्छे बुरे कर्मों के कारण ही विश्वासपात्र मित्र भी शत्रु बन जाते है और शत्रु मित्र बन जाते हैं।
दिगम्बर जैन आचार्य सुन्दरसागर जी की सुशिष्या आर्यिका सुनयमति जी ने उक्त बात कही।कर्म सिद्धांत पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हम आज जो भी दुख भोग रहे हैं वह हमारे द्वारा किसी पूर्व जन्म में किये गये कर्म का फल ही है।इसलिये हमे प्रत्येक कार्य को करते समय उसके अच्छे बुरे परिणाम की तरफ भी सोचना चाहिये।जिस प्रकार अग्नि की शांति के लिये जल आवश्यक है उसी प्रकार क्रोध के लिये क्षमा सर्वोपरि है।हमारे संत महात्मा क्षमा से ही अपने शत्रु को परास्त करते हैं।क्षमा का भाव परमानेंट सॉल्यूशन है। गिरनार जी,सम्मेदशिखर आदि जैन तीर्थक्षेत्रों पर किये जा उपसर्गों पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे शाश्वत तीर्थ क्षेत्रों,जिनालयों,जैन साधुओं की रक्षा करना प्रत्येक जैन साधर्मी का कर्तव्य है।तीर्थ क्षेत्रों,पर्वत की वन्दना और मंदिरों में पूजा करने मात्र से धर्म सुरक्षित नहीं होगा।उसके लिये हमें सड़क पर उतरकर प्रतिकार करना ही होगा।
मुनि सेवा समिति के प्रचार प्रमुख सुनील जैन एवं प्रेमांशु चौधरी ने बताया कि विगत एक सप्ताह से मुनिसुव्रतनाथ जिनालय नवकार नगर में आर्यिका संघ के सानिध्य में समाजजन प्रवचन,स्वाध्याय का लाभ ले रहे हैं।दोपहर में महिला वर्ग द्वारा जिज्ञासा समाधान एवम तत्व चर्चा की जा रही है।प्रवचन के अंत मे जिनवाणी स्तुति मधुबाला प्रकाशचन्द जैन ने एवम आचार्य सुंदरसागर जी का अर्घ्य करिश्मा दीदी ने प्रस्तुत किया। आर्यिका संघ की आहारचर्या का अवसर कामिनी अतुल जैन एवम पायल तरुण गंगवाल परिवार को मिला।